छायावाद सन 1920 -1936
हिंदी में सर्वप्रथम मुकुटधर
पांडेय ने जवलपुर से प्रकाशित पत्रिका सन 1920 में हिंदी में छायावाद शीर्षक से 4 किस्तों में एक लेख प्रकाशित
करवाया मुकुटधर पांडेय को लिखित रूप में छायावाद का प्रथम युक्ता स्वीकार किया गया | डॉ नगेन्द्र के अनुसार छायावाद
स्थूल के प्रति शूछम का विद्रोह है |
छायावाद क्या है?
छायावाद के
स्वरूप को समझने के लिए उस पृष्ठभूमि को समझ लेना आवश्यक है,जिसने उसे
जन्म दिया। साहित्य के क्षेत्र में प्राय: एक नियम देखा जाता है कि पूर्ववर्ती युग
के अभावों को दूर करने के लिए परवर्ती युग का जन्म होता है। छायावाद के मूल में भी
यही नियम काम कर रहा है। इससे पूर्व द्विवेदी युग में हिंदी कविता कोरी उपदेश
मात्र बन गई थी। उसमें समाज सुधार की चर्चा व्यापक रूप से की जाती थी और कुछ
आख्यानों का वर्णन किया जाता था। उपदेशात्मकता और नैतिकता की प्रधानता के कारण
कविता में नीरसता आ गई। कवि का हृदय उस निरसता से ऊब गया और कविता में सरसता लाने
के लिए वह छटपटा उठा। इसके लिए उसने प्रकृति को माध्यम बनाया। प्रकृति के माध्यम
से जब मानव-भावनाओं का चित्रण होने लगा,तभी छायावाद का जन्म हुआ और कविता
इतिवृत्तात्मकता को छोड़कर कल्पना लोक में विचरण करने लगी।
छायावाद की
परिभाषा
आचार्य
रामचंद्र शुक्ल ने छायावाद को स्पष्ट करते हुए लिखा है -"छायावाद शब्द का
प्रयोग दो अर्थों में समझना चाहिए। एक तो रहस्यवाद के अर्थ में,जहां उसका
संबंध काव्य-वस्तु से होता है अर्थात् जहां कवि उस अनंत और अज्ञात प्रियतम को को
आलम्बन बनाकर अत्यंत चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है।
छायावाद शब्द का दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति-विशेष के व्यापक अर्थ में
है।... छायावाद एक शैली विशेष है,जो लाक्षणिक प्रयोगों,अप्रस्तुत विधानों और अमूर्त उपमानों को लेकर चलती है।" दूसरे अर्थ में उन्होंने छायावाद को चित्र-भाषा-शैली कहा है।
महादेवी
वर्मा- ने छायावाद का मूल सर्वात्मवाद दर्शन में माना है। उन्होंने लिखा है कि
"छायावाद का कवि धर्म के अध्यात्म से अधिक दर्शन के ब्रह्म का ऋणी है, जो मूर्त और अमूर्त विश्व को मिलाकर पूर्णता पाता है। ... अन्यत्र वे
लिखती हैं कि छायावाद प्रकृति के बीच जीवन का उद्-गीथ है।
डॉ. राम कुमार
वर्मा- ने छायावाद और रहस्यवाद में कोई अंतर नहीं माना है। छायावाद के विषय में
उनके शब्द हैं- "आत्मा और परमात्मा का गुप्त वाग्विलास रहस्यवाद है और वही
छायावाद है। एक अन्य स्थल पर वे लिखते हैं - "छायावाद या रहस्यवाद जीवात्मा
की उस अंतर्निहित प्रवृत्ति का प्रकाशन है जिसमें वह दिव्य और अलौकिक सत्ता से
अपना शांत और निश्चल संबंध जोड़ना चाहती है और यह संबंध इतना बढ़ जाता है कि दोनों
में कुछ अंतर ही नहीं रह जाता है।...परमात्मा की छाया आत्मा पर पड़ने लगती है और
आत्मा की छाया परमात्मा पर। यही छायावाद है।"
छायावादी कवियों के दो भागो
में बाटा गया है |
1- वृहत्रयी - प्रसाद,पन्त, निराला
2- लघुत्रयी - महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा, भगउती चरण वर्मा
जयशंकर प्रसाद-
जयशंकर प्रसादकी प्रथम
छायावादी कविता सन 1918 में झरना
में संकलित हुयी | खड़ी बोली
में जयशंकर प्रसाद का प्रथम काव्य संग्रह कानन कुसुम है |
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित
झरना को छायावाद की प्रथम रचना स्वीकार किया गया है | इसको छयावाद का प्रथम प्रयोगशाला भी कहा गया है |
कमायनि एक ऐतिहासिक महाकाव्य
है जो 15 सर्गो में
विभक्त है प्रसाद के कामायनी में पात्र मनु को मन का प्रतीक, श्रद्धा को हृदय का प्रतीक, येणा को बुद्धि का प्रतीक माना गया है | कमायनि को छयावाद का उपनिषद भी
कहा गया है
निराला -
जन्म - 1899
मृत्यु - 1961
जन्म स्थान - महिसादल
पिता का नाम - राम सहाय त्रिपाठी
पत्नी " - मनोहरदेवी
मृत्यु स्थान- प्रयागराज
निराला को क्रान्तिकारी तथा
विद्रोही कवि भी कहा जाता है
निराला की रचना सरोज स्मृति हिंदी का सर्वशश्रेठ शोक गीत है | निराला को मुक्तक छंद का
प्रवर्त्तक भी माना जाता है |
पन्त -
जन्म - 1900
मृत्यु - 1977
जन्म स्थान - कौसाम्बी
मृत्यु स्थान- प्रयागराज
बाल्य नाम - गुसाई दत्त
पंत जी को प्रकृत का चतुर
चितेरे तथा प्रकृति का सुकुमार भी कहा जाता है |
पंत की रचना पल्लव को छायावाद का
घोषणा पत्र कहते है |
1. जय शंकर प्रसाद (1889-1936 ई.) के काव्य संग्रह :1.चित्राधार(ब्रज भाषा में रचित कविताएं); 2.कानन-कुसुम; 3. महाराणा का महत्त्व; 4.करुणालय; 5.झरना ;6.आंसू; 7.लहर; 8.कामायनी।2. सुमित्रानंदन पंत (1900-1977ई.) के काव्य संग्रह :1.वीणा; 2.ग्रन्थि;3.पल्लव; 4.गुंजन ;5. युगान्त ;6. युगवाणी; 7.ग्राम्या;8.स्वर्ण-किरण; 9. स्वर्ण-धूलि;10. युगान्तर; 11.उत्तरा ;12. रजत-शिखर; 13.शिल्पी; 14.प्रतिमा; 15.सौवर्ण; 16.वाणी ;17.चिदंबर; 18.रश्मिबंध; 19.कला और बूढ़ा चांद; 20.अभिषेकित; 21.हरीश सुरी सुनहरी टेर; 22. लोकायतन; 23.किरण वीणा ।3. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'(1898-1961ई.) के काव्य-संग्रह: 1.अनामिका ;2. परिमल; 3.गीतिका ;4.तुलसीदास; 5. आराधना;6.कुकुरमुत्ता; 7.अणिमा; 8. नए पत्ते; 9.बेला; 10.अर्चना ।4. महादेवी वर्मा(1907-1988ई.) की काव्य रचनाएं:1.रश्मि ;2.निहार; 3.नीरजा; 4.सांध्यगीत; 5.दीपशिखा; 6.यामा ।5. डॉ.रामकुमार वर्मा(1905- )की काव्य रचनाएं :1.अंजलि ;2.रूपराशि; 3.चितौड़ की चिता; 4.चंद्रकिरण; 5.अभिशाप ;6. निशीथ; 7.चित्ररेखा;8.वीर हमीर; 9. एकलव्य।6. हरिकृष्ण'प्रेमी'(1908- )की काव्य रचनाएं : 1.आखों में ;2.अनंत के पथ पर; 3.रूपदर्शन; 4. जादूगरनी; 5.अग्निगान; 6.स्वर्णविहान।
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